मुंबई सीमाशुल्क एवं मुंबई पत्तन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पुर्तगालियों का आगमन

मुंबई, जो उस समय “सात लघु द्वीप” के नाम से जाना जाता था, के मूल निवासी कोली कहलाते थे । ये सात द्वीप जो एक नगर में जोड़ दिये गए, वे थे ,

  • कोलाबा
  • ओल्ड वूमेंस आइलैंड
  • मुंबई
  • मजगांव
  • वर्ली
  • माटुंगा
  • माहिम

वर्ष 1498, जो इनके कालीकट पहुंचने का साक्षी बना, जबकि वास्को डी गामा की अगुवाई वाली पुर्तगाल की पहली व्यापारिक यात्रा ने एशिया में यूरोपीय वर्चस्व के युग की शुरुआत की । मुंबई के लिए पुर्तगालियों का पहली दर्ज यात्रा जनवरी 1509 में हुई जब वे माहिम में कम संख्या में उतरे जो दीव की ओर जुड़ा हुआ था, अगले 25 वर्षों तक वे मुंबई द्वीप मे छिपकर जाया करते थे । 1532 में उन्होने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से उत्तरी मुंबई से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित बसीन को कब्जे में लिया और मुंबई द्वीप और माहिम उप नदी को पुर्तगालियों के आधिपत्य में ले आए ।

1534 में बहादुर शाह ने पुर्तगालियों के साथ एक संधि की जिसके अंतर्गत बसीन और मुंबई द्वीप पुर्तगाल के राजा को सौंप दिये गए ।

ईस्ट इंडिया कंपनी

ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1615 AD तक सूरत में अपना आधार स्थापित कर लिया था । पश्चिमी भारत से व्यापार पर पकड़ बनाने और उसे मजबूत करने का काम उन्होने सूरत से किया । मुंबई द्वीप के प्रचुर प्राकृतिक लाभों का पता चलते ही ईस्ट इंडिया कंपनी की सूरत काउंसिल ने लंदन के अधिकारियों को प्रेरित किया कि वे पुर्तगालियों से मुंबई द्वीप को खरीद लें । यह 1661 में हुआ जब ग्रेट ब्रिटेन के चार्ल्स II और पुर्तगाल की इनफेंटा कैथरीन के मध्य विवाह संधि हुई और मुंबई द्वीप और पत्तन ग्रेट ब्रिटेन के राजा उनके वंशजों और उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित हुआ । ब्रिटिश लोगों ने मुंबई द्वीप और पत्तन को 1668 में 10 पाउंड के वार्षिक किराये पर ईस्ट इंडिया कंपनी को बेच दिया । ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार को प्रोत्साहित करने के उपायों के अंतर्गत सीमाशुल्क भवन, भंडारगृहों, मोल स्टेशन इत्यादी का निर्माण करवाया। 1672 में सूरत काउंसिल के अध्यक्ष और मुंबई के गवर्नर ने कंपनी के मुख्यालय को सूरत से मुंबई स्थानांतरित कर दिया। मुंबई के माध्यम से व्यापार तेजी से बढ़ा । 1735 से मुंबई शिप निर्माण केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हो गया था विशेष रूप से विख्यात वाडिया परिवार को धन्यवाद । कंपनी की सेवा के लिए बहुत से प्रसिद्ध जहाज निर्मित हुए, जिनमें से उल्लेखनीय है ”स्केल बाइ कैसल” , “बकिंघमशायर” इत्यादि। मुंबई के माध्यम से भारतीय निर्यातक वस्तुओं में उन दिनों रॉ सिल्क, कैलीकोज़, हीरे, चाय, पेपर, पोर्सिलीन, काली मिर्च, जड़ी-बूटियाँ एवं दवाएँ इत्यादि शामिल थे। इंग्लैंड से से आयात होने वाले सामानों में ऊनी कपड़े, सीसा, क्विक सिल्वर, हार्डवेयर और बुलियन शामिल थे।

मुंबई पत्तन से 1770 में चीन के साथ सूती वस्त्रों के व्यापार में अचानक उछाल दर्ज किया गया। चीन से यह सूती वस्त्रों का व्यापार 1880 तक जारी रहा। 1795 में सीमाशुल्क दरों में 6 से लेकर 2.5 प्रतिशत की कटौती और सूरत से व्यापारियों के लगातार बहिर्गमन से मुंबई के व्यापार को बहुत गति मिली और इस व्यापार के विवरणों को दर्ज करने के लिए 1801 में एक व्यवापारिक रिपोर्टर की नियुक्ति की गई। 1813 में ब्रिटिश संसद द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार अधिकार को समाप्त करते हुए व्यापार में एक उल्लेखनीय विस्तार दर्ज किया गया। इंग्लैण्ड से भारत की ओर रवाना हुआ पहली वाष्प नौका “इंटरप्राइज” थी। 1843 में यह लंदन से मुंबई 30 दिनों में आया और दो वर्षों के पश्चात इसकी पन्द्रह दिवसीय पाक्षिक सेवा आरंभ की गई। 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी का अवसान हुआ और मुंबई ब्रिटिश ताज के सीधे शासन के अन्तर्गत हो गया।

सीमाशुल्क भवन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नवीन सीमाशुल्क भवन के निर्माण का अनुमोदन दिनांक 25.01.1911 को 22 लाख की लागत पर मुख्य भवन और पुराने भवन की लागत शामिल करते हुए मुंबई को प्रदान किया गया था। मुख्य भवन की लागत 15.52 लाख और उसकी नींव की औसत गहराई 30 फीट बंदरगाह के दलदल के नीचे। उसी समय नवीन सीमाशुल्क का भवन इस निर्माण में अद्वितीय था तथा निर्माण का उच्चतम् दर आठ आना प्रति गज फीट अनुमानित था। सीमाशुल्क आयुक्तालय, नमक, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क मुंबई को प्रदत्त शक्तियों की धारा 11 का जल सीमाशुल्क अधिनियम 1878 को प्रयोग करते हुए नवीन सीमाशुल्क भवन के रूप में बैलार्ड पियर के पास उक्त अधिनियम एवं उसकी सीमाएं निम्नानुसार तय की गईं-

पश्चिम - निचोल रोड
उत्तर - पब्लिक रोड
पूर्व - स्पोर्ट रोड
दक्षिण – बैलार्ड रोड़

बॉम्बे प्रसीडेंसी की काउंसिल में राज्यपाल ने दिनांक 12.04.1901 को धारा 11 के जल सीमाशुल्क अधिनियम 1878 के तहत माल को उतारने एवं शिपमेंट हेतु 72 लघु बंदरगाह को जोड़ते हुए बॉम्बे को मुख्य बन्दरगाह एवं 6 लघु बन्दहगाह को सिंध को कराची के 6 मुख्य बन्दरगाह को जोड़ते हुए घोषित किया गया। दिनांक 15.01.1986 को प्रेसीडेंसी के कांउसिल में राज्यपाल नियुक्त किया गया एवं बॉम्बे पोर्ट को 21.05.1912 को पुनरक्षित किया एवं घोषित किया गया। जो कि अभी भी वह प्रचलन एवं अस्तित्व में है। सीमाशुल्क प्रशासन, जल सीमाशुल्क अधिनियम 1878 द्वारा नियमित किया गया तथा कुछ सम्बंधित अधिनियम 1962 तक प्रचलन में आया जब सभी संवैधानिक उपबंध समेकित किए गए एवं भारतीय सीमाशुल्क अधिनियम 1962 बना।

सीमाशुल्क भवन का संगठनात्मक विकास

मुंबई सीमाशुल्क 1878 के बहुत पहले अस्तित्व में आया। जब जल अधिनियम 1878 बना तब उसके परिणाम स्वरूप सीमाशुल्क अधिनियम 1962 को स्थान मिला। शुरूआत में सीमाशुल्क भवन बॉम्बे के क्षेत्राधिकार को बन्दरगाह एवं मुंबई सरहद की सीमाओं के साथ-साथ हवाई पत्तन के आसपास के क्षेत्रों को भी विस्तारित किया गया। एयर कार्गो कॉम्पलेक्स में कार्गो एवं हवाई पत्तन के यात्रियों की निकासी को शामिल करते हुए सीमाशुल्क भवन के इस क्षेत्र में तस्कर विरोधी गतिविधियों का एक भाग है। 60 के मध्य दशक के दौरान अचानक तस्करी की गतिविधियों में वृद्धि होने लगी पश्चिमी तटीय क्षेत्र में तस्करी रोधी मशीनरी को बढ़ावा दिया जाने लगा ताकि तस्करी के बढ़ते संकट के सामने लड़ा जा सके।1970 में एक अतिरिक्त समाहर्ता, सीमाशुल्क (निवारक) के अंतर्गत सीमाशुल्क समाहर्तालय (निवारक) का गठन किया गया जिसे सीमाशुल्क भवन के तलाशी एवं सूचना शाखा और केन्द्रीय उत्पाद के सागरीय और निवारक शाखा, बॉम्बे एवं स्वर्ण नियंत्रण।

विमानपत्तन और एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स पर सीमाशुल्क गतिविधिया 1983 तक मुंबई सीमाशुल्क भवन से ही संचालित होती रहीं , 1997 में सहार विमानपत्तन पर एक अलग समाहर्तालय का गठन किया गया जो दो खंडों, सीमाशुल्क समाहर्तालय, विमानपत्तन एवं सीमाशुल्क समाहर्तालय, एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स में विभाजित हुआ । नवीन वृहताकार विमानों के परिचालन और हवाई यातायात में उल्लेखनीय वृद्धि को देखते हुए और एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स एवं विमानपत्तन पर दैनिक कार्यों के प्रभावी नियंत्रण हेतु यह आवश्यक था । तत्पश्चात जुलाई, 1997 में नवीन सीमाशुल्क भवन, बॉम्बे तीन अलग आयुक्तालयों क्रमशः आयुक्तालय सीमाशुल्क (आयात), आयुक्तालय सीमाशुल्क (निर्यात संवर्धन) और आयुक्तालय सीमाशुल्क (सामान्य) में विभाजित हुआ । आयुक्तालय आयात आयातित सामानों की जांच और उनके मूल्य निरूपण का कार्य करता है । आयुक्तालय सीमाशुल्क (निर्यात) संवर्ग में निर्यात किए जाने वाले सामानों की जाँच एवं निर्यात के लिए आयात से संबंधित आकलन करता है। आयुक्तालय सीमाशुल्क (सामान्य) भूमि, भवन, वाहन, सम्पत्ति, आवास, एमसीडी, लेखा परीक्षक, नकद, लेखा, संगणकों, केन्द्रीय आसूचना एकक, सतर्कता, यू.बी. सेंटर, कार्मिक एवं स्थापना, सीमाशुल्क राजस्व नियंत्रक प्रयोगशाला एवं सी.एच.ए. समूह डी स्थापना को शामिल करते हुए निवारक सेवा संगठन का कार्य करता है। आयुक्तालय आयात आयातित सामानों की जांच और उनके मूल्य निरूपण का कार्य करता है । आयुक्तालय सीमाशुल्क (निर्यात) संवर्ग में निर्यात किए जाने वाले सामानों की जाँच एवं निर्यात के लिए आयात से संबंधित आकलन करता है। आयुक्तालय सीमाशुल्क (सामान्य) भूमि, भवन, वाहन, सम्पत्ति, आवास, एमसीडी, लेखा परीक्षक, नकद, लेखा, संगणकों, केन्द्रीय आसूचना एकक, सतर्कता, यू.बी. सेंटर, कार्मिक एवं स्थापना, सीमाशुल्क राजस्व नियंत्रक प्रयोगशाला एवं सी.एच.ए. समूह डी स्थापना को शामिल करते हुए निवारक सेवा संगठन का कार्य करता है।

नवीन सीमाशुल्क भवन मुंबई आयुक्त सीमाशुल्क (अपील), आयुक्त सीमाशुल्क (अधिनिर्णयन) की बैठक व्यवस्था भी करता है।

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